
पोकरण। एक ओर जहां गांधी चौक को पोकरण शहर की धड़कन माना जाता है, वहीं दूसरी ओर यहां शौचालय जैसी मूलभूत सुविधा का अभाव आज भी हर आने-जाने वाले के सम्मान और स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहा है। यह चौक, जहां से हर राजनीतिक चर्चा, हर सांस्कृतिक रौनक और हर जनचेतना की लहर उठती है, आज जनहित की अनदेखी का सबसे बड़ा उदाहरण बनता जा रहा है।
गांधी चौक – यह नाम आते ही पोकरण की रगों में जुनून और जिम्मेदारी दोनों दौड़ने लगते हैं। हो कोई रैली हो या धरना, सांस्कृतिक आयोजन हो या त्योहारों की शुरुआत – हर राह गांधी चौक से होकर ही जाती है। लेकिन दुखद यह है कि इतनी अहमियत रखने वाला यह स्थान आज साफ-सफाई और स्वच्छता की दृष्टि से पूरी तरह उपेक्षित है।
शौचालय नहीं, मजबूरी है दीवारें
गांधी चौक में एक भी सार्वजनिक शौचालय की व्यवस्था नहीं है। परिणामस्वरूप, यहां आने वाले ग्रामीण, महिलाएं, दुकानदार और ग्राहक मजबूरी में किले की दीवारों का सहारा लेने को मजबूर हैं। सम्मान और स्वच्छता, दोनों ही दांव पर हैं। विशेष रूप से महिलाओं के लिए यह स्थिति अत्यंत पीड़ादायक बन चुकी है।
स्थानीय दुकानदारों की मानें तो, यह समस्या सिर्फ राहगीरों की नहीं, बल्कि उनकी दैनिक दिनचर्या में एक अवरोध बन चुकी है। “हम ना खुद के लिए व्यवस्था कर पा रहे हैं, ना अपने ग्राहकों के लिए,” – यह दर्द हर दुकानदार की जुबान पर है।
राजनीतिक वादे, सिर्फ भाषणों में
हर बार जब कोई राजनीतिक मंच सजता है, तो शौचालय की बात जरूर होती है। हर बार यह वादा किया जाता है कि जल्द यहां शौचालय बनेगा। लेकिन वो वादे अब तोतले जुमले बनकर रह गए हैं। न तो नगर पालिका ने कोई ठोस कदम उठाया, न ही प्रशासन ने इसकी गंभीरता को समझा।
यातायात व्यवस्था भी बेहाल
पोकरण चौराहे से गांधी चौक तक जाने वाला मार्ग इतना संकीर्ण है कि बड़े वाहनों के आमने-सामने आ जाने पर जाम की स्थिति बन जाती है। खासकर त्योहारों के समय यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। बाबा रामदेव मंदिर के पास तो स्थिति यह हो जाती है कि पैदल चलना तक दूभर हो जाता है। कई बार सीएलजी मीटिंग्स में वैकल्पिक मार्ग की मांग उठाई गई है, लेकिन प्रशासन ने आज तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं की।
बेजुबान पशु भी परेशानी का कारण
गांधी चौक में आवारा पशुओं की भरमार भी दुकानदारों और आमजन के लिए मुसीबत बन चुकी है। लेकिन इस दिशा में भी नगर पालिका की निष्क्रियता स्पष्ट दिखाई देती है।
जनता की पुकार – अब तो सुनो!
अब सवाल ये है कि 2025 में नगर पालिका चुनाव से पहले भाजपा सरकार इन समस्याओं को कितनी गंभीरता से लेती है? क्या गांधी चौक को उसका सम्मान और सुव्यवस्था वापस मिल पाएगी? क्या यह ऐतिहासिक स्थल, जो संस्कृति और संवाद का केंद्र है, अब स्वच्छता और सुविधा का प्रतीक बन पाएगा?
जनता की आवाज़ अब प्रशासन और नगर पालिका तक स्पष्ट रूप से पहुंच रही है। अब यह देखना होगा कि सिर्फ वादों की बौछार होती है या समस्याओं का समाधान भी सामने आता है।
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